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कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 17 मई 2025 को विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर आरोप लगाया कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत में पाकिस्तान को पहले से सूचित किया, जिसे उन्होंने "अपराध" करार दिया। राहुल ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर का एक वीडियो साझा किया, जिसमें विदेश मंत्री कहते हैं, "ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था कि हम आतंकी ढांचे पर हमला कर रहे हैं, न कि सैन्य ठिकानों पर। इसलिए सैन्य बलों के पास बाहर रहने और हस्तक्षेप न करने का विकल्प था। उन्होंने इस अच्छी सलाह को नहीं माना।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर मोरारजी देसाई जैसी "गलती" करने का आरोप लगाया, दावा करते हुए कि ऑपरेशन की जानकारी पहले पाकिस्तान को दी गई, जिससे आतंकवादी बच निकले। खेड़ा ने इसे "पाप" करार दिया और दावा किया कि इस तरह की गलती से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हुआ। बीजेपी ने जवाब में इसे कांग्रेस की "देशविरोधी" बयानबाजी करार दिया।
मोरार जी देसाई की गलती !
मोरारजी देसाई, भारत के चौथे प्रधानमंत्री (1977-1979), जनता पार्टी सरकार के नेतृत्व में पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उनके कार्यकाल के दौरान एक विवादास्पद घटना सामने आई, जिसमें उन पर आरोप लगा कि उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक को भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) की गुप्त जानकारी दी, जिसका भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
क्या हुआ था ?
रॉ ने 1970 के दशक में पाकिस्तान के कहुटा में परमाणु हथियार कार्यक्रम की निगरानी शुरू की थी। रॉ के एजेंटों ने महत्वपूर्ण सबूत जुटाए थे, जैसे कि कहुटा के एक हेयरकटिंग सैलून से परमाणु वैज्ञानिकों के बाल, जिनमें रेडिएशन की पुष्टि हुई, जिससे पता चला कि पाकिस्तान यूरेनियम को परमाणु बम के लिए प्रोसेस कर रहा था। रॉ के पास इस कार्यक्रम की गहन निगरानी और एजेंटों का नेटवर्क था। एक रॉ एजेंट ने कहुटा परमाणु संयंत्र का नक्शा भी हासिल किया था, जिसके लिए उसने $10,000 की मांग की थी, लेकिन देसाई ने बजट की कमी का हवाला देकर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
आरोप है कि 1978 में, मोरारजी देसाई ने जनरल जिया-उल-हक के साथ एक टेलीफोनिक बातचीत में यह खुलासा कर दिया कि भारत को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की पूरी जानकारी है। यह बातचीत कथित तौर पर कूटनीतिक संवाद के दौरान हुई, जिसमें देसाई ने अनजाने में या कूटनीतिक दबाव बनाने के इरादे से यह जानकारी साझा की।
इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कहुटा में सक्रिय रॉ के एजेंटों की पहचान कर उन्हें निशाना बनाया। कई भारतीय एजेंटों को पकड़ा गया और उनकी हत्या कर दी गई, जिससे रॉ का नेटवर्क ध्वस्त हो गया।
इस घटना ने भारत की खुफिया क्षमताओं को गंभीर नुकसान पहुँचाया और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को बिना किसी बड़ी बाधा के आगे बढ़ने का मौका मिला। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका माना जाता है।
रॉ के प्रति नापसंदगी :
मोरारजी देसाई, के बारे में यह कहा जाता है कि वे भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रति नकारात्मक रवैया रखते थे। उनकी यह नापसंदगी कई कारणों से थी और इसके परिणामस्वरूप रॉ की कार्यक्षमता और प्रभाव पर असर पड़ा।
रॉ की स्थापना 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुई थी, और इसे उनकी सरकार का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता था। मोरारजी, जो इंदिरा गांधी के कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे, रॉ को कांग्रेस की "राजनीतिक हथियार" के रूप में देखते थे।
मोरारजी देसाई की रॉ के प्रति नापसंदगी उनके गांधीवादी सिद्धांतों, कांग्रेस के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, और खुफिया गतिविधियों के प्रति उनकी असहजता से उपजी थी। देसाई को लगता था कि रॉ का उपयोग विपक्षी नेताओं की जासूसी और राजनीतिक हितों के लिए किया जा सकता था, जिसे वे अस्वीकार्य मानते थे।
बजट में कटौती और निगरानी :
देसाई ने प्रधानमंत्री बनते ही रॉ के बजट में कटौती की और इसकी गतिविधियों पर सख्त निगरानी शुरू की। उन्होंने रॉ का बजट इतना कम कर दिया था कि एजेंसी बंद होने की कगार पर पहुँच गई। इसके सूचना प्रभाग को बंद कर दिया गया, और कई महत्वपूर्ण गतिविधियाँ रुक गईं।
उन्होंने रॉ के संस्थापक निदेशक रामेश्वर नाथ काव (आर.एन. काव) को भी हटा दिया, जिन्हें रॉ को मजबूत बनाने का श्रेय दिया जाता है। इस कदम को रॉ की स्वायत्तता को कम करने की कोशिश के रूप में देखा गया।
निशान-ए-पाकिस्तान विवाद :
14 अगस्त 1990 को, पाकिस्तान ने मोरारजी देसाई को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया। वह इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले और एकमात्र भारतीय हैं। पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर कहा कि यह सम्मान मोरारजी देसाई को भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर बनाने और कूटनीतिक शांति प्रयासों में उनके योगदान के लिए दिया गया।
मोरारजी देसाई द्वारा कथित तौर पर रॉ की जानकारी साझा करने की घटना भारत की खुफिया और राष्ट्रीय सुरक्षा के इतिहास में एक विवादास्पद अध्याय है। इसने रॉ के नेटवर्क को गंभीर नुकसान पहुँचाया और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को बढ़ावा देने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की। हालांकि, इस घटना के पीछे की मंशा—क्या यह अनजाने में हुई गलती थी या कूटनीतिक रणनीति—पर आज भी बहस जारी है।