तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने विपक्ष के नेता वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा


मोदी सरकार ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के लिए सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों को विदेश भेजने का फैसला किया है। इन प्रतिनिधिमंडलों में विपक्षी सांसदों को भी शामिल किया गया है। सरकार ने 59 सांसदों की सूची जारी की है, जिसमें कांग्रेस के शशि थरूर, एनसीपी (शरद पवार) की सुप्रिया सुले, डीएमके की कनिमोझी, और अन्य विपक्षी दलों के सांसद शामिल हैं। सात अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल 30 से अधिक देशों में जाएंगे, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, यूएई, जापान, और दक्षिण अफ्रीका, ताकि भारत का पक्ष रखा जा सके।

यह कदम 1994 में नरसिम्हा राव सरकार द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को जेनेवा भेजने की याद दिलाता है, जब उन्होंने पाकिस्तान के प्रस्ताव को विफल किया था।

1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHRC) के जेनेवा में आयोजित सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा था। यह कदम इसलिए उठाया गया था क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। नरसिम्हा राव ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए वाजपेयी की विदेश नीति में विशेषज्ञता और वाक्पटुता को देखते हुए उन्हें इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी।

वाजपेयी ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, जिसमें सलमान खुर्शीद, फारूक अब्दुल्ला और हामिद अंसारी जैसे नेता शामिल थे। उन्होंने जेनेवा में भारत का पक्ष मजबूती से रखा और पाकिस्तान के प्रस्ताव को विफल करने में सफलता हासिल की। इस प्रतिनिधिमंडल ने न केवल भारत की एकजुटता को दर्शाया, बल्कि वाजपेयी की कूटनीतिक क्षमता को भी उजागर किया। इस घटना को भारतीय राजनीति में 'राष्ट्र प्रथम' के सिद्धांत के उदाहरण के रूप में देखा जाता है