अखंड सुहाग का पर्व है गणगौर, जाने क्या है गणगौर का इतिहास और पूजा का महत्व


गणगौर का पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व आमतौर पर होली के बाद, मार्च या अप्रैल महीने में आता है। गणगौर पूजा विशेष रूप से राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं, पूजा करती हैं और भगवान शिव तथा उनकी पत्नी पार्वती (गणगौर) से सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। गणगौर का पर्व 2 प्रमुख दिनों में मनाया जाता है:

इस पर्व का समापन गणगौर के विसर्जन से होता है, जब महिलाएं गणगौर की मूर्तियों को पानी में विसर्जित करती हैं।

राजस्थान में गणगौर का पर्व बहुत प्रसिद्ध है और यह पूरे राज्य में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से निम्नलिखित शहरों और क्षेत्रों में गणगौर पर्व को अत्यधिक श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है:

1. जयपुर:

जयपुर में गणगौर पर्व एक महत्वपूर्ण और रंगीन उत्सव होता है। यहाँ की महिलाएं विशेष रूप से इस दिन के लिए तैयार होती हैं और पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना करती हैं। जयपुर में गणगौर की सवारी बहुत प्रसिद्ध होती है, जिसमें महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनकर और गणगौर की मूर्तियों को सजाकर शहर में भव्य सवारी निकालती हैं।

2. उदयपुर:

उदयपुर में भी गणगौर का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ की महिलाएं पूरे जोश और उमंग के साथ गणगौर की पूजा करती हैं। यह पर्व खासकर झीलों के किनारे मनाया जाता है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है। उदयपुर में गणगौर सवारी भी बहुत प्रसिद्ध है।

3. कोटा:

कोटा में गणगौर का पर्व खासतौर पर महिलाओं के बीच बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ के लोग पारंपरिक रूप से इस दिन पूजा करते हैं और साज-श्रृंगार के साथ गणगौर की मूर्तियों की पूजा करते हैं।

4. जोधपुर:

जोधपुर में भी गणगौर का पर्व विशेष रूप से लोकप्रिय है। यहाँ महिलाएं घरों में गणगौर की पूजा करती हैं और समुदायिक रूप से भी इस पर्व को मनाने की परंपरा है। जोधपुर में खासतौर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और लोक संगीत का आयोजन भी होता है।

5. भरतपुर:

भरतपुर में भी गणगौर पर्व मनाने की परंपरा है और यहाँ पर इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस शहर में भी महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं और पूरे दिन व्रत रखती हैं।

6. भीलवाड़ा:

भीलवाड़ा में भी गणगौर का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ की महिलाएं खास तौर पर इस दिन नए कपड़े पहनकर पूजा करती हैं और घर-घर जाकर गणगौर के गीत गाती हैं।

राजस्थान के इन शहरों और इलाकों में गणगौर का पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का भी अहम हिस्सा है।

गणगौर की पूजा और पर्व की एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक कहानी है, जो इसे मनाने के कारणों को समझाती है। यह कथा मुख्य रूप से भगवान शिव और गणगौर (पार्वती) से जुड़ी हुई है। 

गणगौर की कहानी :

कहा जाता है कि पार्वती जी (गणगौर) ने भगवान शिव से विवाह के बाद कई वर्षों तक तपस्या की थी, ताकि उनका विवाह सही और सुखमय हो। एक बार जब पार्वती जी ने भगवान शिव से विवाह के लिए तपस्या की, तो उन्होंने कठिन तपस्या के दौरान विभिन्न कष्टों का सामना किया। पार्वती जी ने अपनी तपस्या के दौरान खुद को साफ-सुथरा रखने और संतान सुख की प्राप्ति के लिए अनवरत पूजा की। इसी तपस्या के बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

यह कथा एक विशेष नारी के रूप में शक्ति और तपस्या की प्रतीक के रूप में मानी जाती है, जिससे महिलाओं के जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। पार्वती जी की कठिन तपस्या और भगवान शिव से प्रेम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से पूजा में शामिल किया जाता है।

गणगौर और उनका आशीर्वाद:

कहानी के अनुसार, जब पार्वती जी का विवाह हुआ, तो उनके साथ भगवान शिव ने गणगौर नामक एक रूप में पूजा की। गणगौर का रूप विशेष रूप से महिलाओं के लिए सौभाग्य और सुख-शांति की कामना का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन पार्वती और गणगौर की पूजा करती हैं और उनके आशीर्वाद से अपने वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करती हैं।

गणगौर की पूजा की विशेषता:

अन्य पहलु:

गणगौर पर्व और पूजा का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के सामूहिक आयोजन और एकजुटता का प्रतीक भी है। यह उन सभी महिलाओं को एक साथ लाकर उनके मनोबल को बढ़ाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ मिलकर खुशियों का आनंद लेने का अवसर देता है।

यह कहानी और पूजा का पर्व महिलाओं की शक्ति और उनकी संतान सुख की कामना को समर्पित है।

गणगौर का प्रथम दिन ( गणगौर संकटन ): यह दिन तृतीया तिथि से पहले होता है, जब महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं और व्रत करती हैं।

गणगौर का दूसरा दिन ( गणगौर मुख्य पूजा ): यह दिन तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं गणगौर की मूर्तियों को सजाकर पूजा करती हैं, गाने गाती हैं और सवारी निकालती हैं।

पार्वती और गणगौर की पूजा: महिलाएं गणगौर की मूर्तियों को सजाकर और उनका पूजा करके अपने पति और संतान की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं।

व्रत और उपवास: महिलाएं इस दिन उपवासी रहती हैं और पूरे दिन विशेष व्रत करती हैं।

समाज में सद्भावना: यह पूजा एकजुटता, परिवार के लिए प्यार और एकता की भावना को भी बढ़ावा देती है।