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राजस्थान की सियासत में 7 जून 2025 को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिला, जब कांग्रेस के महासचिव सचिन पायलट ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जयपुर स्थित सिविल लाइंस सरकारी आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की। यह मुलाकात करीब दो घंटे तक चली और इसे राजस्थान कांग्रेस में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी और दोनों नेताओं के बीच तनाव को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लेकिन इसका राजनीतिक महत्व बड़ा है, क्योंकि दोनों नेता लंबे समय से एक-दूसरे के खिलाफ रहे हैं। यह कदम पार्टी के लिए 2028 के चुनावों से पहले एकजुटता का संदेश दे सकता है। हालांकि, दोनों नेताओं के बीच गहरे मतभेदों को पूरी तरह खत्म करना अभी भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
राजेश पायलट की पुण्यतिथि :
यह मुलाकात सचिन पायलट के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि (11 जून) के अवसर पर आयोजित होने वाले स्मृति कार्यक्रम से जुड़ी थी। सचिन पायलट ने गहलोत को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण दिया, जो दौसा के पास भंडाना-जिरोटा में राजेश पायलट मेमोरियल में होगा। इस आयोजन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और समर्थकों की बड़ी संख्या में मौजूदगी की उम्मीद है।
गहलोत का बयान:
मुलाकात के बाद अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया x पर लिखा, “AICC महासचिव श्री सचिन पायलट ने मुझे निवास पर पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय श्री राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया। राजेश जी और मैं 1980 में एक साथ लोकसभा में आए और करीब 18 साल तक सांसद रहे। उनकी अचानक मृत्यु मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति और कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका थी।”
दोनों नेताओं के बीच लंबे समय से चली आ रही तकरार :
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच राजस्थान कांग्रेस में लंबे समय से तनाव रहा है। यह तनाव 2018 के विधानसभा चुनावों से शुरू हुआ, जब सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया। इससे दोनों नेताओं के बीच मतभेद गहरा गए।
जुलाई 2020 में सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की थी, जिसमें उन्होंने 18 विधायकों के साथ सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की। इसके बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया। गहलोत ने पायलट को “निकम्मा” और “गद्दार” जैसे शब्दों से संबोधित किया था।
2022 में जब गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में थे, उनके समर्थक विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे की धमकी देकर पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की संभावना को रोकने की कोशिश की। गहलोत ने बाद में अध्यक्ष पद की दौड़ से हटने का फैसला किया।
इन घटनाओं ने राजस्थान कांग्रेस को गहलोत और पायलट खेमों में बांट दिया। 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान ने दोनों नेताओं के बीच सुलह कराने की कोशिश की, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने मध्यस्थता की। हालांकि, यह सुलह पूरी तरह सफल नहीं रही, और पार्टी को 2023 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
मुलाकात का राजनीतिक महत्व :
यह मुलाकात राजस्थान कांग्रेस में एकता की दिशा में एक कदम मानी जा रही है। इसे “नई शुरुआत” और “पुराने गिले-शिकवे भुलाने” की कोशिश बताया गया।
मुलाकात ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह गहलोत-पायलट के बीच सुलह का प्रयास हो सकता है, ताकि 2028 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस एकजुट होकर बीजेपी का मुकाबला कर सके।
सचिन पायलट को 2023 में AICC महासचिव बनाया गया, और वे छत्तीसगढ़ में पार्टी के प्रभारी भी हैं। राजस्थान में उनकी लोकप्रियता, खासकर युवाओं है। इस मुलाकात को पायलट की ओर से गहलोत के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
गहलोत, तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, अब भी राजस्थान में कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं। उनकी उम्र और हाल की हार के बावजूद, उनका संगठनात्मक अनुभव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। इस मुलाकात को गहलोत की ओर से एकता का संदेश देने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
कांग्रेस की रणनीति :
राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी एकजुटता पर जोर दे रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजस्थान में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा। ऐसे में, गहलोत और पायलट का एक मंच पर आना पार्टी के लिए सकारात्मक संदेश हो सकता है।
यह मुलाकात क्या वाकई पुराने विवादों को खत्म कर पाएगी, यह समय बताएगा। 11 जून को दौसा में होने वाला कार्यक्रम इस दिशा में अगला कदम हो सकता है, जहां गहलोत और पायलट एक साथ दिख सकते हैं।