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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का PSLV-C61 मिशन, जो इसका 101वां लॉन्च था, 18 मई 2025 को तकनीकी खराबी के कारण असफल रहा। यह मिशन EOS-09 (Earth Observation Satellite-09) को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun-Synchronous Polar Orbit, SSPO) में स्थापित करने के लिए था, लेकिन तीसरे चरण (Third Stage) में खराबी के कारण मिशन अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका। आइए, इस घटना का विस्तृत विश्लेषण करें।
तकनीकी खराबी का कारण
PSLV एक चार-चरण वाला रॉकेट है। मिशन के तीसरे चरण (PS3) में एक असामान्यता (anomaly) देखी गई। तीसरा चरण ठोस ईंधन मोटर (240 किलो न्यूटन थ्रस्ट), जो रॉकेट को पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर ले जाने के बाद कक्षा में पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है।पहले और दूसरे चरण ने सामान्य रूप से काम किया, और लॉन्च के शुरुआती 6 मिनट तक प्रक्षेप पथ (trajectory) सही था।
ISRO चेयरमैन वी. नारायणन ने बताया कि तीसरे चरण के ठोस ईंधन मोटर ने प्रज्वलन (ignition) तो किया, लेकिन इसके संचालन के दौरान चैम्बर दबाव (chamber pressure) में कमी देखी गई। इससे रॉकेट अपनी नियोजित कक्षा तक नहीं पहुंच सका, और EOS-09 सैटेलाइट को SSPO में स्थापित नहीं किया जा सका।
परिणाम : मिशन असफल रहा, और सैटेलाइट गलत कक्षा (संभवतः अंडाकार कक्षा) में पहुंचा या पूरी तरह से कक्षा में स्थापित नहीं हो सका।
ISRO की प्रतिक्रिया
ISRO ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर पोस्ट किया, "आज 101 वां लॉन्च, PSLV-C61, दूसरा चरण तक सामान्य था। तीसरे चरण में एक अवलोकन के कारण मिशन पूरा नहीं हो सका।"
चेयरमैन वी. नारायणन ने लॉन्च के कुछ मिनट बाद प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, "पहले दो चरणों ने अपेक्षा के अनुरूप काम किया। तीसरे चरण में मोटर शुरू हुई, लेकिन इसके संचालन के दौरान एक समस्या देखी गई। हम पूरे प्रदर्शन का अध्ययन कर रहे हैं और जल्द ही वापस आएंगे।"
ISRO ने एक Failure Analysis Committee (FAC) गठित की है, जिसमें ISRO विशेषज्ञ और शैक्षणिक क्षेत्र के सदस्य शामिल हैं। यह समिति टेलीमेट्री डेटा, उड़ान डेटा, और लॉन्च तैयारियों की जांच करेगी। समिति का नेतृत्व किसी पूर्व ISRO प्रमुख या वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया जा सकता है। ISRO ने कहा कि विश्लेषण के बाद सुधारात्मक उपाय किए जाएंगे, और जल्द ही अगला मिशन लॉन्च किया जाएगा।
PSLV की विफलता का इतिहास
PSLV, जिसे ISRO का "वर्कहॉर्स" कहा जाता है, ने 94% की सफलता दर के साथ 62 लॉन्च पूरे किए हैं (18 मई 2025 तक)। यह तीसरी बार है जब PSLV मिशन पूरी तरह असफल रहा है। इससे पहले PSLV-D1 (20 सितंबर 1993) पहला विकासात्मक लॉन्च, IRS-1E सैटेलाइट के साथ, नियंत्रण प्रणाली में खराबी के कारण विफल। और PSLV-C39 (31 अगस्त 2017) IRNSS-1H सैटेलाइट के साथ, हीट शील्ड के अलग न होने के कारण विफल।
PSLV-C61 की विफलता 2017 के बाद पहली और कुल मिलाकर तीसरी विफलता है, जो इस रॉकेट की विश्वसनीयता को दर्शाती है।
ISRO के लिए झटका:
यह मिशन ISRO की 101वीं लॉन्च और PSLV की 63वीं उड़ान थी, जिसे एक मील का पत्थर माना जा रहा था। विफलता ने ISRO की गगनयान, चंद्रयान-5, और मंगलयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों से पहले तकनीकी चुनौतियों को उजागर किया।
ISRO चेयरमैन वी. नारायणन ने लॉन्च से दो दिन पहले तिरुपति के लॉर्ड वेंकटेश्वर मंदिर में मिशन की सफलता के लिए प्रार्थना की थी, और इसे "महत्वपूर्ण मील का पत्थर" बताया था।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण :
अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीके घोष ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इसे बड़ा झटका नहीं मानना चाहिए। ISRO की विफलता दर अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में बहुत कम है। हर लॉन्च एक सीख है।"
स्काईरूट के पवन कुमार चंदना ने कहा, "PSLV-C39 (2017) की विफलता के बाद भी हम हिले थे। यह हमें याद दिलाता है कि अंतरिक्ष उड़ान कितनी जटिल है।"
आगे की राह :
ISRO की दो और PSLV उड़ानें 2025 की दूसरी छमाही में नियोजित हैं। यह विफलता गगनयान (2026 में मानव अंतरिक्ष मिशन) और निसार (NASA-ISRO संयुक्त मिशन) जैसे आगामी मिशनों के लिए तकनीकी सुधारों को प्रेरित कर सकती है।
निष्कर्ष
PSLV-C61 मिशन की विफलता ISRO के लिए एक दुर्लभ झटका है, जो तीसरे चरण के ठोस ईंधन मोटर में दबाव की कमी के कारण हुआ। यह 101वां लॉन्च और EOS-09 सैटेलाइट की तैनाती भारत की अंतरिक्ष निगरानी और आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण था। ISRO ने तुरंत जांच शुरू कर दी है, और Failure Analysis Committee जल्द ही कारणों का खुलासा करेगी। ISRO की ऐतिहासिक विश्वसनीयता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखते हुए, यह संगठन इस असफलता से सीख लेकर और मजबूत होकर वापस आएगा।