शेफाली वर्मा : रोहतक की गलियों से वर्ल्ड कप हीरो बनने तक की कहानी, सचिन तेंदुलकर की फैन, वाइल्ड कार्ड एंट्री से भारत को दिलाई वर्ल्ड कप जीत
भारत की नई ‘वंडर गर्ल’
भारत की महिला क्रिकेट टीम की धुआंधार बल्लेबाज़ शफाली वर्मा का नाम आज हर भारतीय की जुबां पर है। 2 नवंबर 2025 को नवी मुंबई के डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में खेले गए महिला क्रिकेट विश्व कप फाइनल में उन्होंने जब 87 रनों की शानदार पारी खेली, तब पूरा देश “शफाली-शफाली” के नारों से गूंज उठा। इस जीत के पीछे एक लंबी, संघर्षभरी और प्रेरणादायक कहानी छिपी है।
वर्ल्ड कप 2025 — वाइल्ड कार्ड एंट्री से मैदान में वापसी
आईसीसी महिला वर्ल्ड कप 2025 के लिए भारत की शुरुआती टीम में शफाली का नाम नहीं था। लेकिन प्रतीका रावल की चोट के कारण उन्हें वाइल्ड कार्ड एंट्री मिली। शायद यही किस्मत का लिखा था — कि शेफाली फिर से मैदान में लौटें और भारत को गौरव दिलाएँ। शेफाली वर्मा ने कहा “मुझे पता था कि अगर मौका मिला तो मैं इसे जाने नहीं दूँगी।” और हुआ भी वही — उन्होंने फाइनल में 87 रन ठोके, 2 विकेट लिए और “प्लेयर ऑफ द मैच” बनीं।
फाइनल का दिन — भारत की जीत और शेफाली का ‘सेहरा’
फाइनल में भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 298 रन बनाए। शेफाली की 87 रनों की पारी ने मैच की नींव रखी। बॉलिंग में भी उन्होंने कमाल किया — दक्षिण अफ्रीका को 246 रनों पर समेटते हुए भारत को 52 रन से जीत दिलाई।
आज शेफाली वर्मा न सिर्फ भारतीय क्रिकेट की स्टार हैं, बल्कि हर उस लड़की की प्रेरणा हैं, जो सीमाओं को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है। मैच खत्म होते ही शफाली अपने पिता से फोन पर बोलीं — “पापा, ये जीत आपकी है... आपने मुझे लड़के बनाकर नहीं, खिलाड़ी बनाकर भेजा था।” उस पल पूरे देश की आँखों में गर्व के आँसू थे।
बचपन — जब लड़का बनकर खेलना पड़ा क्रिकेट
शेफाली का जन्म 28 जनवरी 2004 को हरियाणा के रोहतक में हुआ। पिता संजीव वर्मा एक ज्वेलर थे, लेकिन क्रिकेट के जबरदस्त शौकीन। जब शेफाली ने बचपन में कहा — “मुझे क्रिकेट खेलना है,” तो पिता ने हौसला तो दिया, मगर चुनौतियाँ भी सामने थीं। रोहतक में कोई भी क्रिकेट अकादमी लड़कियों को शामिल नहीं करती थी। ऐसे में पिता ने साहसिक कदम उठाया — शेफाली के बाल कटवाए और उन्हें लड़के के वेश में क्रिकेट खेलने भेजा। “लोगों को पता ही नहीं चला कि वो लड़की है। मैदान पर उसने खेल से सबका दिल जीत लिया।” उनका सफर यहीं से शुरू हुआ — धूल भरे मैदानों से लेकर इंटरनेशनल स्टेडियम तक।
सचिन की फैन, जिसने उनके जैसे बनने का सपना देखा
शेफाली का बचपन सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखकर बीता। उनके घर में सचिन के पोस्टर लगे थे और हर मैच का टीवी रिकॉर्डिंग बार-बार देखा जाता था। उन्होंने कहा था — “मैंने क्रिकेट इसलिए चुना क्योंकि मैं सचिन सर जैसी बल्लेबाजी करना चाहती थी।” 2020 में जब शेफाली पहली बार सचिन से मिलीं, तो उन्होंने कहा — “सर, मैं आपको देखकर बड़ी हुई हूँ। आज आपसे मिलकर सपना पूरा हो गया।” और कल वही सचिन तेंदुलकर दर्शक दीर्घा में बैठकर शेफाली का खेल देख रहे थे.
कम उम्र में कमाल — 15 साल की उम्र में भारत के लिए डेब्यू
सिर्फ 15 साल की उम्र में शफाली ने भारत की राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई। वह सबसे कम उम्र की भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अर्धशतक लगाया — सचिन के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए। उनकी पहचान बनी — “Fearless Cricketer” तेज़ स्ट्रोक, आत्मविश्वास और आक्रामक रवैया — यही उनका ट्रेडमार्क बन गया।

