272 सम्मानित नागरिकों का खुला पत्र: विपक्ष के आरोपों पर कड़ी आपत्ति, चुनाव आयोग पर हमलों को बताया ‘षड्यंत्र’
भारत के 272 वरिष्ठ नागरिकों—जिनमें 16 पूर्व न्यायाधीश, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 133 पूर्व सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं—ने एक खुला पत्र जारी कर विपक्ष के नेता और कांग्रेस पर संवैधानिक संस्थाओं की छवि खराब करने का आरोप लगाया है।
पत्र में लिखा है कि भारत का लोकतंत्र हिंसा से नहीं, बल्कि उसकी संस्थाओं के विरुद्ध फैलाई जा रही जहरीली बयानबाज़ी से चुनौती का सामना कर रहा है। नागरिकों का कहना है कि कुछ राजनेता ठोस नीतियों और विचारों की जगह नाटकीय राजनीतिक रणनीति अपनाकर बेबुनियाद आरोपों के सहारे माहौल बिगाड़ रहे हैं।
“अब निशाने पर चुनाव आयोग”—पत्र में गंभीर आरोप
वरिष्ठ नागरिकों ने आरोप लगाया कि पहले सशस्त्र बलों, न्यायपालिका और संसद की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए, और अब व्यवस्थित तरीके से चुनाव आयोग की ईमानदारी पर हमला किया जा रहा है।
पत्र में लिखा है कि लगातार आरोप लगाकर चुनाव आयोग की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है। लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा आयोग पर “वोट चोरी” में शामिल होने और “100% सबूत” होने के दावे को भी पत्र में गंभीर और निराधार बताया गया।
कांग्रेस का आरोप – चुनाव आयोग ने BJP से मिलीभगत की,
BJP और आयोग—दोनों ने किया खंडन
कांग्रेस ने हाल ही में हुई अपनी बैठक के बाद दावा किया था कि चुनाव आयोग कथित रूप से भाजपा के साथ मिलकर वोटों की हेराफेरी में शामिल है। इस पर भाजपा और चुनाव आयोग दोनों ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया।
टीएन शेषन और एन गोपालस्वामी का उल्लेख—“EC की साख मजबूत रही है”
पत्र में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों टीएन शेषन और एन गोपालस्वामी का उदाहरण देते हुए कहा गया कि इन अधिकारियों ने आयोग की विश्वसनीयता को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया था। ऐसे में, आज भी ज़रूरी है कि जनता और सिविल सोसाइटी इस संस्था के साथ खड़ी रहे।
खुले पत्र में अवैध प्रवासन को भी चुनावी शुचिता के लिए बड़ा खतरा बताया गया। नागरिकों का कहना है कि दुनिया के कई देश चुनाव प्रक्रिया को सुरक्षित रखने के लिए सख्त कदम उठाते हैं, और भारत को भी इसी दिशा में सक्रिय रहना चाहिए।
पत्र में आयोग से आग्रह किया गया है कि—
अपनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखें,
आवश्यकता पड़ने पर कानूनी कार्रवाई करें,
और राजनीतिक पीड़ित मानसिकता का हिस्सा बनने से बचें।
साथ ही, राजनीतिक दलों से अनुरोध किया गया है कि वे आरोप-प्रत्यारोप से हटकर नीतियों और ठोस कार्यक्रमों पर फोकस करें, तथा चुनावी फैसलों को परिपक्वता और गरिमा के साथ स्वीकार करें।
