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    राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से सवालों की चिठ्ठी लिखकर सलाह मांगी ; क्या कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है ?

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    राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से सवालों की चिठ्ठी लिखकर सलाह मांगी ; क्या कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है ?

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल भेजकर सलाह मांगी है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के फैसले के जवाब में उठाया गया, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा निर्धारित की गई थी। राष्ट्रपति ने इस फैसले की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए, खासकर "डीम्ड असेंट" (स्वतः सहमति) की अवधारणा और समय-सीमा के संबंध में, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसी कोई समय-सीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं है।

    ये सवाल मुख्य रूप से राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों, विधेयकों पर सहमति की प्रक्रिया, और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं से संबंधित हैं। कुछ प्रमुख सवाल निम्नलिखित हैं:

    राज्यपाल के विकल्प : अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक प्रस्तुत होने पर राज्यपाल के पास क्या संवैधानिक विकल्प हैं ?

    मंत्रिपरिषद की सलाह : क्या राज्यपाल को विधेयक पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य होना चाहिए ?

    न्यायिक समीक्षा : क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं, खासकर जब विधेयक कानून बनने से पहले हो ?

    समय-सीमा : संविधान में समय-सीमा न होने पर क्या न्यायालय राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है ?

    अनुच्छेद 142 का दायरा : क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसे निर्देश जारी कर सकता है जो संविधान या कानून के प्रावधानों से असंगत हों ?

    राष्ट्रपति की सलाह : क्या राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर निर्णय लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी आवश्यक है ?

    संवैधानिक विवेक : क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल का संवैधानिक विवेक (discretion) पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा से मुक्त है ?

    डीम्ड असेंट : क्या स्वतः सहमति की अवधारणा संवैधानिक ढांचे के अनुरूप है ?

    राष्ट्रपति का यह कदम तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्पन्न हुआ, जिसमें कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि के 10 विधेयकों को रोकने को "अवैध" करार दिया और तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित की। इस फैसले ने राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों, विशेष रूप से "पॉकेट वीटो" (अनिश्चितकाल तक विधेयक रोकना) के उपयोग पर सवाल उठाए। राष्ट्रपति ने तर्क दिया कि संविधान में समय-सीमा या प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है, और डीम्ड असेंट की अवधारणा उनकी शक्तियों को सीमित करती है।

    यह रेफरेंस केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन, संघीय ढांचे, और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं पर गहन बहस को जन्म दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट को अब पांच जजों की संविधान पीठ गठित कर इन सवालों पर विचार करना होगा, हालांकि उसका निर्णय गैर-बाध्यकारी होगा।

    उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए इसे "सुपर पार्लियामेंट" की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया था।

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