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    मणिपुर में हिंसा: नेशनल हाइवे बंद, दवाइयों और जरूरी सामानों की किल्लत, इंफाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट, थौबल, काकचिंग, बिष्णुपुर, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जैसे जिलों में कर्फ्यू और इंटरनेट बंद

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    मणिपुर में हिंसा: नेशनल हाइवे बंद, दवाइयों और जरूरी सामानों की किल्लत, इंफाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट, थौबल, काकचिंग, बिष्णुपुर, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जैसे जिलों में कर्फ्यू और इंटरनेट बंद

    मणिपुर में हिंसा के कारण नेशनल हाइवे बंद हैं, जिससे दवाइयों, भोजन और अन्य जरूरी सामानों की आपूर्ति में भारी कमी आई है। इंफाल और अन्य क्षेत्रों में सप्लाई में कमी की वजह से  दवाइयां महंगी हुई है, और स्थानीय लोग बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं।

    चुराचांदपुर और इंफाल इन क्षेत्रों में हिंसक प्रदर्शनों, आगजनी और सड़क जाम के कारण आपूर्ति चैन रुकावट आयी है। दवाइयों की कमी विशेष रूप से गंभीर है, क्योंकि मणिपुर की स्वास्थ्य प्रणाली पहले से ही कोविड-19 के प्रभाव और संसाधनों की कमी से जूझ रही है।

    हिंसा के कारण विस्थापित लोगों के लिए राहत शिविरों में भी चिकित्सा सहायता और भोजन की कमी देखी गई है। स्तनपान कराने वाली माताओं को दूध की कमी का सामना करना पड़ रहा है, और बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।

    कर्फ्यू और इंटरनेट बंद:

    इंफाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट, थौबल, काकचिंग, बिष्णुपुर, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जैसे जिलों में कर्फ्यू और इंटरनेट बंद होने से व्यापार और संचार बाधित हुआ है, जिससे जरूरी सामानों की उपलब्धता और भी कम हो गई है।

    हिंसा के कारण

    मणिपुर में हिंसा का कारण मैतेई और कुकी समुदायों के बीच गहरा अविश्वास, एसटी दर्जे को लेकर विवाद, उग्रवादी संगठनों की सक्रियता, और प्रशासनिक नाकामी है। हाइवे अवरोधों ने दवाइयों और जरूरी सामानों की कमी को और गंभीर कर दिया है। शांति बहाली के लिए दोनों समुदायों के बीच बातचीत, विश्वास निर्माण, और केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

    मणिपुर में 3 मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा, मुख्य रूप से मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच, कई कारणों से भड़क रही है। 2025 में हिंसा का नया दौर जिरीबाम जिले से शुरू हुआ, जो पहले अपेक्षाकृत शांत था। 

    जातीय तनाव और अनुसूचित जनजाति (एसटी) मांग :

    मैतेई समुदाय, जो इंफाल घाटी में बहुसंख्यक है, अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मांग रहा है। 14 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश, जिसने मैतेई को एसटी दर्जा देने की सिफारिश की, ने कुकी और अन्य आदिवासी समुदायों में असंतोष पैदा किया।

    कुकी समुदाय ने इस मांग का विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई 2023 को 'आदिवासी एकता मार्च' के दौरान हिंसा भड़क गई।

    जिरीबाम में हालिया हिंसा (2024-2025) :

    नवंबर 2024 में जिरीबाम जिले में एक मुठभेड़ में 10 संदिग्ध चरमपंथियों की मौत के बाद तनाव बढ़ गया। इसके बाद 6 लोगों, जिनमें 3 बच्चे शामिल थे, के शव मिलने से मैतेई समुदाय में आक्रोश फैल गया, जिसके कारण हिंसा भड़क उठी।

    प्रदर्शनकारियों ने मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमले किए, आगजनी की, और सड़कों को अवरुद्ध कर दिया।

    फ्री मूवमेंट नीति का विरोध :

    8 मार्च 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर मणिपुर में फ्री मूवमेंट शुरू करने की कोशिश की गई, लेकिन कुकी बहुल क्षेत्रों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण इसे रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर पथराव, टायर जलाए और पेड़ गिराए, जिससे 27 सुरक्षाकर्मी घायल हुए।

    कुकी और मैतेई समुदायों के बीच अविश्वास के कारण दोनों समुदाय एक-दूसरे के क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं, जिसने आवाजाही और व्यापार को और प्रभावित किया है।

    कुकी समुदाय से जुड़े इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) और मैतेई समुदाय से जुड़े आरामबाई टेंगोल और मैतेई लिंपुन जैसे संगठनों ने हिंसा को बढ़ाने में भूमिका निभाई है। इन संगठनों के पास हथियार और लड़ाके हैं, जो शांति स्थापना में बाधा डाल रहे हैं।

    जंगल और जमीन के मुद्दे, अवैध प्रवास, और नशीले पदार्थों की तस्करी ने भी तनाव को बढ़ाया है।

    प्रशासनिक और राजनीतिक विफलता :

    हिंसा को नियंत्रित करने में राज्य और केंद्र सरकार की विफलता ने स्थिति को और जटिल किया है। पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, जो 9 फरवरी 2025 को इस्तीफा दे चुके हैं, और केंद्र सरकार पर चुप्पी साधने के आरोप लगे हैं।

    नवंबर 2024 में केंद्र ने जिरीबाम सहित छह क्षेत्रों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) फिर से लागू किया, जिससे प्रदर्शनकारियों में और आक्रोश बढ़ा।

    मौतें और विस्थापन :

    मई 2023 से अब तक 270 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, हजारों घायल हुए हैं, और लगभग 60,000 लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।

    आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: स्कूल, कॉलेज और व्यवसाय बंद होने से शिक्षा और आजीविका प्रभावित हुई है। इंटरनेट बंद और कर्फ्यू ने संचार और व्यापार को और बाधित किया है।

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