अहमदाबाद में एयर इंडिया के क्रैश प्लेन का ब्लैक बॉक्स मिला ; जानें ब्लैक बॉक्स क्या होता है ? हादसे में 270 लोगों की जानें गई

अहमदाबाद में 12 जून 2025 को एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171, टेकऑफ के कुछ ही क्षणों बाद क्रैश हो गई। इस हादसे में 242 यात्रियों और क्रू मेम्बर्स में से 241 लोगों की मौत हो गई, और एक यात्री जीवित बच गया। हादसे में अभी तक 270 लोगों की जान जा चुकी है। इस प्लेन का ब्लैक बॉक्स, घटनास्थल से मलबे से बरामद कर लिया गया है। यह ब्लैक बॉक्स डॉक्टरों के छात्रावास की छत पर मिला।
ब्लैक बॉक्स क्या होता है ?
ब्लैक बॉक्स, इसका नाम भले ही हो, लेकिन इसका रंग चमकीला नारंगी या पीला होता है ताकि दुर्घटना के बाद इसे आसानी से खोजा जा सके। यह प्लेन के पिछले हिस्से में रखा जाता है, क्योंकि यह हिस्सा दुर्घटना के दौरान सबसे कम प्रभावित होता है, जिससे डेटा सुरक्षित रहने की संभावना बढ़ जाती है ब्लैक बॉक्स को फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) के रूप में जाना जाता है, एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो विमान की उड़ान के दौरान महत्वपूर्ण डेटा और कॉकपिट की बातचीत को रिकॉर्ड करता है।
ब्लैक बॉक्स दो मुख्य हिस्सों से मिलकर बनता है
फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) : यह प्लेन की गति, ऊंचाई, दिशा, इंजन का प्रदर्शन, फ्लाइट का रूट, और अन्य सिस्टम की स्थिति को रिकॉर्ड करता है। FDR सैकड़ों मापदंडों को रिकॉर्ड कर सकता है, जैसे विमान की स्पीड, ऊंचाई, फ्लैप्स और रडर की स्थिति, समय और तारीख यह डेटा दुर्घटना के कारणों, जैसे तकनीकी खराबी या बाहरी कारणों को समझने में मदद करता है।
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) : यह कॉकपिट में होने वाली सभी आवाजों को रिकॉर्ड करता है, जिसमें पायलट और कॉ-पायलट के बीच बातचीत, पायलट और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) के बीच संचार, चेतावनी अलार्म और मैकेनिकल आवाजें
कॉकपिट के आसपास की अन्य आवाजें CVR आमतौर पर उड़ान के आखिरी 2 घंटों की रिकॉर्डिंग को स्टोर करता है, और नई रिकॉर्डिंग पुरानी को ओवरराइट कर देती है। यह जांचकर्ताओं को यह समझने में मदद करता है कि हादसे से ठीक पहले पायलट क्या कर रहे थे और क्या कोई मानवीय भूल हुई थी।
ब्लैक बॉक्स की विशेषताएं
ब्लैक बॉक्स टाइटेनियम या स्टील जैसी मजबूत धातुओं से बना होता है, जो इसे भीषण आग (1100 डिग्री सेल्सियस तक), पानी का दबाव (20,000 फीट की गहराई तक), और भारी प्रभाव (3,400 G तक) से बचाता है। इसकी मजबूत बनावट यह सुनिश्चित करती है कि दुर्घटना के बाद भी डेटा सुरक्षित रहे।
अंडरवॉटर लोकेटर बीकन (ULB) : ब्लैक बॉक्स में एक बीकन होता है जो पानी में डूबने पर 37.5 kHz की फ्रीक्वेंसी पर सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल 30 दिनों तक सक्रिय रहता है और 14,000 फीट की गहराई से भी भेजा जा सकता है, जिससे पानी में डूबे विमान का ब्लैक बॉक्स ढूंढना आसान होता है।
एक सामान्य ब्लैक बॉक्स का वजन लगभग 4.5 किलोग्राम (10 पाउंड) होता है, और इसमें रिकॉर्डिंग के लिए छोटी चिप्स होती हैं जो डेटा को सुरक्षित रखती हैं।
ब्लैक बॉक्स क्यों रखा जाता है हर प्लेन में ?
ब्लैक बॉक्स हर विमान में अनिवार्य रूप से रखा जाता है, क्योंकि यह विमान दुर्घटना की जांच में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। ब्लैक बॉक्स से प्राप्त डेटा और ऑडियो रिकॉर्डिंग दुर्घटना के कारणों, जैसे तकनीकी खराबी, पायलट की गलती, मौसम की स्थिति, या बाहरी पक्षी से टकराव या आतंकी हमला, को समझने में मदद करते हैं।
ब्लैक बॉक्स से मिली जानकारी के आधार पर विमानन उद्योग में सुरक्षा मानकों को बेहतर किया जाता है। कई हादसों के बाद ब्लैक बॉक्स के डेटा ने नए नियमों और तकनीकी सुधारों को प्रेरित किया है।
ब्लैक बॉक्स का डेटा जांचकर्ताओं, विमानन प्राधिकरणों, और कानूनी प्रक्रियाओं में यह निर्धारित करने में मदद करता है कि हादसे की जिम्मेदारी किसकी थी—पायलट, एयरलाइन, निर्माता, या अन्य कारण। FDR और CVR के डेटा से हादसे के आखिरी क्षणों को कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए पुनर्निर्माण किया जाता है, जिससे यह समझा जा सकता है कि विमान ने कैसे और क्यों नियंत्रण खोया।
ब्लैक बॉक्स को अत्यंत मजबूत बनाया जाता है ताकि यह सबसे खतरनाक परिस्थितियों में भी डेटा को सुरक्षित रख सके। यह एक मूक गवाह के रूप में कार्य करता है, जो हादसे की सच्चाई को सामने लाता है।
ब्लैक बॉक्स का इतिहास
ब्लैक बॉक्स का आविष्कार 1950 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन ने किया था। उस समय प्लेन दुर्घटनाओं के कारणों का पता लगाना मुश्किल था, क्योंकि कोई विश्वसनीय रिकॉर्डिंग उपकरण नहीं था। 1930 के दशक में फ्रांस के इंजीनियर फ्रांस्वा हुस्सेनोट ने एक प्रारंभिक डेटा रिकॉर्डर बनाया था, जो फोटोग्राफिक फिल्म पर डेटा रिकॉर्ड करता था, लेकिन आधुनिक ब्लैक बॉक्स का विकास डेविड वॉरेन को श्रेय दिया जाता है। 1954 में पहली बार ब्लैक बॉक्स का उपयोग शुरू हुआ, और तब से यह हर कमर्शियल और मिलिट्री विमान का अनिवार्य हिस्सा बन गया है।
अहमदाबाद प्लेन क्रैश में ब्लैक बॉक्स की भूमिका
अहमदाबाद में एयर इंडिया के प्लेन हादसे में बरामद ब्लैक बॉक्स से यह पता चलने की उम्मीद है कि हादसा तकनीकी खराबी, पायलट की गलती, या किसी अन्य कारण से हुआ। यह उपकरण न केवल हादसे के कारणों को उजागर करता है, बल्कि भविष्य में विमानन को और सुरक्षित बनाने में भी मदद करता है। इसकी जांच से CVR से यह पता चलेगा कि हादसे से पहले पायलट और कॉ-पायलट ने क्या बातचीत की, क्या उन्होंने आपातकालीन चेकलिस्ट का पालन किया, और क्या कोई तकनीकी समस्या पर चर्चा हुई।
FDR से यह जानकारी मिलेगी कि क्या विमान के इंजन, लैंडिंग गियर, हाइड्रोलिक्स, या अन्य सिस्टम में कोई खराबी थी। क्या इंजन फेल हुआ या कोई अन्य तकनीकी गड़बड़ी थी ?
खबरों के अनुसार, प्लेन टेकऑफ के बाद पायलट ने ATC को "मेडे कॉल" भेजा था, जो आपातकालीन संकेत है। CVR से यह पता चलेगा कि इस कॉल के पीछे क्या कारण था।
ब्लैक बॉक्स को अब फॉरेंसिक लैब में भेजा जाएगा, जहां विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से डेटा और ऑडियो को डिकोड किया जाएगा। इस प्रक्रिया में 10-15 दिन लग सकते हैं, और इसके बाद एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इस हादसे की जांच डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) और एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) द्वारा की जा रही है।