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    मनमोहन सिंह : एक सफल राजनेता या असफल प्रधानमन्त्री !

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    मनमोहन सिंह : एक सफल राजनेता या असफल प्रधानमन्त्री !

    "जहाँ सच है वहाँ खड़े हैं, इसीलिए लोगो की आँखों में गड़े हैं", जमाना तो नहीं मगर सियासत का इतिहास कहता है कि जिसने भी सच की राजनीति की वो सियासत के दलदल में कहीं खो गया. सत्ता के लालच में आजकल सच्ची राजनीति कहीं खो गई है. राजनीति मूल्यहीन हो गई है. हर किसी को सत्ता का सुख चाहिए, चाहे इसके लिए कोई भी मूल्य क्यों ना चुकाना पड़।

    मगर एक जिसने बगैर सत्ता का लालच किये राजनीति की, जो कभी सिर्फ एक शिक्षक के रूप में अपनी खास पहचान रखता था और इतना शर्माता था कि किसी के साथ जरूरत के अलावा बात भी नहीं करता था. एक जाना माना अर्थशास्त्री, जिसे राजनीति का र भी नहीं पता था बस एक फ़ोन कॉल ने उसके लिए राजनीति के दरवाजे खोल दिए थे.

    राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों  की जुबान में असफल प्रधानमंत्री मगर सच की कसौटी पर खरा उतरा एक सफल प्रधानमंत्री जिसे शौक नहीं था अपना नाम ऊँचा करने का जो सिर्फ काम पर भरोसा करता था. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और मशहूर अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की. सियासत के दलदल से अनजान डॉ. सिंह प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल में वित्तमंत्री बने और देश में निजीकरण, वैश्वीकरण और उदारीकरण लागू करके देश को  बड़े संकट से बचाया. 

    कई विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र के अध्यापक रहे, तो कभी आर्थिक सलाहकार, कभी योजना आयोग के उपाध्यक्ष, कभी भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, तो कभी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे, इन पदों पर रहते हुए इन्होंने कई सुधार किये और एक सफल अर्थशास्त्री होने का परिचय दिया. कभी डॉ. सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू बताते हैं, उन्होंने भले कितना भी वक्त गाँधी परिवार के साथ बिताया होगा मगर उनके रिश्ते बस अपने काम तक ही सीमित थे, ये बात दर्शाती है कि डॉ. सिंह को कभी सामाजिक होना नहीं आया वो बस अपने एकात्म से खुश  थे। 

    आज की राजनीति आपको सिखाती है कि आपको अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की सिर्फ बुराइयाँ ढूँढ़नी है. उसने अच्छा क्या किया उससे आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए और शायद आम जनता भी अब इसी विचाधारा के साथ चलने लगी है कि हमारा पसंदीदा नेता जिसकी बुराई कर रहा है वो तो बुरा ही होगा, मगर हम भूल रहे हैं कि आम जनता की ये सोच किसी सच्चे नेता को आगे नहीं बढ़ने देगी. डॉ. सिंह के साथ भी यही हुआ है हमें उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने जो उनके बारे में बताया वो हम सच मान बैठे हैं मगर याद रखिये कि उन्होंने जो देश के लिए किया वो सत्ता लोलुप लोग करना तो दूर सोच भी नहीं सकते.

    डॉ. सिंह की उपलब्धियाँ के बारे में बात करे तो 2005 में उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम लागू करवाकर सरकारी कार्यों को पारदर्शी बनाया और 2006 में मनरेगा जैसा कार्यक्रम चलाया जो गरीब मजदूर को रोजगार प्रदान करने की गारण्टी देता है मगर हमने भूला दिया है. उन्हें याद करते भी हैं, तो उनका मजाक उड़ाने के लिए बस. 

    डॉ. सिंह भारत के आर्थिक सुधारों के प्रणेता और सफल अर्थशास्त्री हैं उनसे किसी भी आर्थिक मुद्दे पर सलाह ली जा सकती हैं और ली जानी चाहिए, अगर इस बात पर हम उन्हें तवज्जो नहीं देते कि वो हमारे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. तो ये मानसिकता कभी हमारे देश के लिए भारी पड़ सकती हैं, अगर आप डॉ. सिंह से सलाह लेंगे तो वो देश हित में कभी पीछे नहीं हटेंगे. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की बात को हमेशा अपने जेहन में रखना चाहिए जब उन्होंने कहा था कि पार्टियाँ बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए इसका लोकतंत्र रहना चाहिए. 

    किसी की कम बात करने की आदत कमजोरी नहीं होती वक़्त आने पर वो अपनी बात रखना जानते हैं. डॉ. सिंह योगदान देश के लिए अनमोल तोहफा है, वो चाहे अर्थशास्त्री के रूप में हो या राजनेता तथा प्रधानमंत्री के रूप में.

    - रमेश राही

    ( उपर्युक्त लेख के विचार पूर्ण रूप से लेखक के निजी विचार है )

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